वर्णन
तिल का तेल खाने यपग्य तिल से बीज से निकाला हुआ तेल होता है और दक्षिण भारतीय पाकशैली मे इसका प्रयोग किया जाता है। चायनीक़, कुरीयन और अन्य दक्षिणपुर्व एशिआई पाकशैली मे भी इसका प्रयोग किया जाता है।
तिल के तेल के विभिन्न प्रकार होते है। कोल्ड प्रैस्ड तिल का तेल काफी हद तक बेरंग होता है और वही भारतीय तिल का तेल सुनहरे रंग का और चायनीक़ तिल का तेल गहरे भूरे रग का होता है। इसका गहरा रंग तिल को भूनने से मिलता है। इसी तरह, कोल्ड प्रैस्ड तिल के तेल का स्वाद भूने हुए तिल के तेल से अलग होता है, क्योंकि इसे सीधर कच्चे तिल से बनाता जाता है। कोल्ड ड्रैस्ड तिल का तेल पुरब स्वास्थ्य केंद्र मर मिलता है, और वही लगभग सभी एशिआई प्रांत मे, गरम प्रेस्ड तिल के तेल को पसंद किया जाता है।
तिल के तेल मे उच्च मात्रा मे (41%) पौलीअनसैच्यूरेटड फॅट (ओमेगा-6 फॅटी एसिड) होते है। लेकिन हाई स्मोकिंग पाईन्ट वाले अन्य खाने के तेल कि तुलना मे यह तेल खुला रखने पर भी जल्दी खराब नही होता। इसका कारण तेल मे प्रस्तुत ऑक्सीकरण रोधी होते है।
चुनने का सुझाव
• खाने मे प्रयोग के लिये, तिल का तेल बोतल या अच्छी तरह बंद सैचेट मे मिलता है। अपनी ज़रुरत अनुसार पैकेट का चुनाव करें।
• तिल का तेल चुनने के वक्त हल्के सुनहरे रंग का तेल चुने।
• साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि इसमे किसी भी प्रकार का रंग ना मिला हो, सफेद दाग या कण ना हो।
रसोई मे उपयोग
• भारतीय दक्षिण पाकशैली मे तिल के तेल का अक्सर खाने मे तड़का लगाने मे, स्वाद बढ़ाने के लिये, चिकनाहट प्रदान करने के लिये औे खाने के संग्रहण के लिये किया जाता है।
• क्योंकि तिल का तेल काफी हद तक बेस्वाद और सुगंध मुक्त होता है, इसलिये इसका प्रयोग बेकिंग मे किया जा सकता है।
• इसका प्रयोग अक्सर सलाद के तेल के रुप मे और साथ ही मार्जरीन बनाने मे यह मुख्य सामग्री होता है।
• आचार बनाने मे तिल के तेल का प्रयोग किया जाता है।
• सौम्य तिल के तेल का स्मोकिंग पाईन्ट अधिक होता है और यह तलने के लिये उपयुक्त होता है। लेकिन भूने हुए तिल से बना गहरे रंग का तिल के तेल का स्मिकिंग पाईन्ट कम होता है और यह तलने के लिये उपयुक्त नही होता। इसकि जगह इसका प्रयोग सब्ज़ीयों कि भूनने मे या ऑमलेट बनाने के लिये किया जाता है।
• एशिया के बहुत से समूह, खासतौर पर पुर्वी एशियन खाने मे, भूने हुए तिल से बने तेल का प्रयोग तड़का लगाने के लिये किया जाता था।
संग्रह करने के तरीके
• तिल के तेल को ठंडी और गहरे रग कि जगह पर रखें।
• तलने के बाद बचे हुए तिल के तेल का बार-बार प्रयोग ना करें क्योंकि एैसा करने से तेल खराब हो सकता है।
• तेल कि बोतल या धातु के बर्तन को बिना खोले साल भर तह रखे जा सकते है। लेकिन खोलने के बाद, तेल का दो महीने के अंदर प्रयोग कर लें, क्योंकि इसके बाद तेल खराब हो सकता है और खाने योग्य नही होता।
• हो सकते तो तिल के तेल जो कॅन से निकालकर काँच कि बोतल मे निकाल लें, जिससे तेल मे धातु का स्वाद नही मिलता; प्लास्टिक के बर्तन का प्रयोग ना करें क्योंकि तेल मे प्लास्टिक का स्वाद मिल सकता है।
स्वास्थ्य विषयक
• तिल का तेल हमारे आहार मे मुख्य भाग निभाता है।
• यह उर्जा का संकेद्रित स्तोत्र है और पचाने मे आसान होता है, और ज़रुरी फॅटी एसिड प्रदान करने के साथ यह विटामीन ई और पौलीअनसैच्यूरेटड फॅटी एसिड का संकेद्रित स्तोत्र होता है, जो रक्त कलेस्ट्रॉल को कम करने मे मदद करता है।
• सैच्यूरेटड फॅट से भरपूर अन्य तेल कि तुलना में तिल के तेल मे पौलीअनसैच्यूरेटड और मोनोअनसैच्यूरेटड फॅट कि भरपूर मात्रा होती है, इसलिये यह पौष्टिक होता है।
• तिल का तेल त्वचा मे आसानी से मिल जाता है और भारत मे तेल कि मालिश के लिये प्रयोग किया जाता है।
• यह सुझाव किया जाता है कि तेल के तेल का प्रयोग सूखी नाक ठीक करने के लिये, कलेस्ट्रॉल कम करने के लिये (क्योंकि इसमे लिगनन नामक फाईटोईस्ट्रोजन होते है), रेचक औषधी के रुप मे, दाँतो मे दर्द और मसुड़ो कि बिमारी के लिये और प्रतिजीवाणु लोशन के रुप मे किया जाता है।